धारा 57 क्या है – देश में अपराध के लिए धाराओं की कमी नहीं है आप कुछ भी काण्ड करेंगे तो इंडियन पेनल कोड के तहत आपको सजा तो सुनाने का प्रावधान है. इसलिए जब भी कोई अपराध करें या गलती से हो जाए तो बहुत सोंच समझकर करिएगा कि कहीं सजा काटते काटते आपकी जिन्दगी न निकल जाए. और आज हम जिस धारा का जिक्र करने जा रहे वो कुछ ऐसी ही है जिसमे एक बार सजा हुई तो जिन्दगी कालकोठरी में ही गुजरने वाली है.
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धारा 302 पर ABP से बात करते हुए अधिवक्ता संजय चौहान कहते हैं कि आप हमेशा सुनते आए होंगे कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 302 के तहत दोषी को आजीवन कारावस की सजा दी गई. लेकिन धारा 302 क्या है इसके तहत क्या सजा दी जा सकती है इसके बारे में काफी लोगों को जानकारी नहीं है. आइये जानते हैं कि क्या है इंडियन पैनल कोड (IPC) की धारा 302.
IPC की धारा 302
अगर आपने किसी की हत्या की है और कोर्ट में आपको दोषी पाया जाता है तो वापके ऊपर IPC की धारा 302 लगायी जाती है. इस धारा के तहत उम्रकैद या फांसी की सजा और जुर्माना हो सकता है. हत्या के मामले में सजा सुनाने के पहले कत्ल के मकसद पर भी ध्यान दिया जाता है. की क्या हत्या इरादतन हुई है या गैर-इरादतन? इस बात को कोर्ट में साबित करना बहुत जरूरी होता है खासकर तब जब मामला हत्या का हो.
हालांकि IPC की ये धारा कत्ल के कई मामले में जिसमें इस्तेमाल नहीं किए जाते. जैसे बिना इरादे के साथ किसी की मौत हो जाना 302 के तहत नहीं आता. आसान भाषा में ऐसे समझिए कि अगर कोई कत्ल हो जाता है लेकिन उसमें किसी का इरादतन दोष नहीं होता. ऐसे केस में धारा 302 नहीं बल्कि धारा 304 के तहत दंड दिए जाते हैं.
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आपने सुना होगा कि कई केस में आजीवन कारावास की सजा मिलने वाले व्यक्ति को 14 साल या 20 साल की सजा काटने के बाद रिहा कर दिया जाता है. इसके पीछे की वजह यह है कि कई मामलों में राज्य सरकारें एक निश्चित मापदंड के आधार पर दोषी की सजा कम करने की पावर रखती है. भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 55 और 57 में सरकारों को सजा को कम करने का अधिकार दिया गया है.
क्या है दोहरी उम्रकैद की सजा का मतलब?
साल 2021 के अक्टूबर में केरल की कोल्लम सेशन कोर्ट ने एक दोषी को सांप से कटवाकर हत्या करने के आरोप में दोहरी उम्रकैद की सजा दी थी. जिसके बाद कई लोगों के मन में आजीवन कारावास को लेकर सवाल उठने लगे कि क्या आजीवन कारावास 14 साल या 20 साल का होता है, लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है.
जब किसी भी अपराधी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई जाती है तो इसका मतलब है कि आरोपी अपनी अंतिम सांस तक जेल की चारदीवारी के अंदर ही सजा काटेगा.
धारा 57 क्या है ?
IPC की धारा 57, जो कि आजीवन कारावास की सजा के समय के संबंध में है. इस धारा के मुताबिक, आजीवन कारावास के सालों को गिनने के लिए इसे बीस साल के कारावास के बराबर गिना जाएगा. लेकिन इसका ये मतलब बिलकुल नहीं है कि आजीवन कारावास 20 साल का होता है.
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यह समय इसलिए बनाया गया है कि अगर कोई काउटिंग करनी हो तो आजीवन कारावास को 20 साल के बराबर माना जाता है. काउंटिंग की जरूरत भी तभी जब किसी को दोहरी सजा सुनाई गई हो या किसी को जुर्माना न भरने की स्थिति में ज्यादा समय के लिए कारावास में रखा जाता है.
इन 5 तरह की सजा का प्रावधान
धारा 57 क्या है – आजीवन कारावास या उम्रकैद की सजा गंभीर अपराधियों को दी जाती है. IPC 1860 में अपराधों के दंड के विषय में विस्तार से बताया गया है. इसी प्रकार IPC की धारा 53 में दंड कितने प्रकार के होते हैं इसके बारे में बताया गया है. IPC कुल पांच तरह के दंड का प्रावधान करती है. इसमें मृत्युदंड, आजीवन कारावास, कारावास, संपत्ति का समपहरण और जुर्माना शामिल हैं.
सरकारों को है सजा करने का आदेश
आजीवन कारावास का मतलब है कि जब तक अपराधी जिंदा है तब तक वह जेल में ही रहेगा. लेकिन सरकार इस सजा को कम कर सकती है. दंड प्रक्रिया संहिता 1973 (CRPC) की धारा 433 के तहत सरकार को अपराधी की सजा को कम करने का अधिकार है. सरकार CRPC की धारा 433 के तहत इन चार तरह की सजा को कम करा सकती है.
- सजा ए मौत की सजा को भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) के तहत किसी अन्य सजा के रूप में कम कर सकती है.
- आजीवन कारावास की सजा को 14 साल के बाद जुर्माने के रूप में कम कर सकती है.
- कठिन कारावास की सजा को एक समय के बाद जुर्माने या जेल के रूप में कम कर सकती है.
- सादा कारावास की सजा को जुर्माने के रूप में कम कर सकती है.
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