Kabir Das: कबीर दास के दोहे करते है जातिवाद का विरोध, जानें क्या है…

Kabir Das: कबीर दास के दोहे करते है जातिवाद का विरोध, जानें क्या है…

कबीर दास ब्राहम्णवाद के खिलाफ अपने दोहों के जरिये जातिवाद और भेदभाव के खिलाफ संघर्ष का रास्ता दिखाती है। बहुजन परंपरा में कबीर जैसे महानायकों का जीवन सबके लिए प्रेरणादायक है। आज इस वीडियो में हम आपके लिए बहुजन नायक कबीर दास के 10 ऐसे दोहे लेकर आए हैं, जो ना सिर्फ जातिवाद, पाखंडवाद और ब्राह्मणवाद का विरोध करते हैं, बल्कि अन्याय के ख़िलाफ़ संघर्ष करने की प्रेरणा देते हैं। तो आइए शुरूआत करते हैं।

1. जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,

मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान।

इन दोहों के जरिये कबीरदास कहते है कि ज्ञान का महत्व किसी की जाति या धर्म के आधार पर नहीं होता। ज्ञानी व्यक्ति की जाति और धर्म को किनारे करके उसका सम्मान करना चाहिए। कबीर बतौर उदाहरण कहते है – जिस तरह से मुसीबत में तलवार काम आती है न की उसको ढकने वाली म्यान, उसी तरह किसी मुश्किल में सज्जन का ज्ञान काम आता है, न कि उसकी जाति और धर्म। कबीर इन दोहों के के माध्यम से एक-दूसरे के प्रति भेदभाव को खत्म कर आपस में प्रेम रखने का संदेश दे रहे हैं।

2. पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोइ।

ढाई आखर प्रेम का, पढ़ै सो पंडित होइ॥

इस दोहे में कवि कह रहे हैं कि लोगों ने तमाम पोथी-पत्रे और ग्रंथ रट लिये, लेकिन असल मायनों में कोई भी पंडित नहीं बन सका। क्योंकि उनके अंदर दूसरे इंसान के लिए प्यार नहीं है। कबीर कहते हैं इस खोखले ज्ञान की जगह अगर ढाई अक्सर के शब्द प्रेम को ही पढ़ लें तो आप असली पंडित बन जाएंगे। यानी की कबीर समाज में सभी वर्गों-जातियों के साथ समानता का व्यवहार करने की बात कह रहे है।

3. ऐसी वाणी बोलिये, मन का आपा खोय,

औरन को सीतल करे आपहुं सीतल होय।

कबीर कहते हैं कि किसी भी व्यक्ति के लिए हमें ऐसी बातें नहीं बोलनी चाहिए जिससे सुनने वाले के दिल को ठेस पहुंचे और आप अपना आपा ही खो बैठें। हमें ऐसी वाणी बोलनी चाहिए जो सामने वाले व्यक्ति को खुशी दे, जब आप दूसरे व्यक्ति के लिए अच्छी बातें बोलेंगे तो आपको भी अच्छा लगेगा। यानि की हमें अपने घरों में ये बातें सिखानी चाहिए ताकि वो किसी की जाति या धर्म देखकर उसके प्रति नफ़रत ज़ाहिर ना करे।

4. पाथर पूजे हरि मिले, तो मैं पूजू पहाड़

घर की चाकी कोई ना पूजे, जाको पीस खाए संसा

कबीर इस दोहे के जरिये पाखंडवाद पर कड़ा प्रहार करते हैं, वो कहते हैं कि अगर पत्थर पूजने से भगवान मिल जाता तो मैं तो पूरा पहाड़ ही पूजने लगूँ, लेकिन ऐसा नहीं है। और ऐसे पत्थर जिसकी पूजा होती है, उससे तो वो पत्थर ज़्यादा उपयोगी है जिससे चक्की के पाट बने हैं और पूरी दुनिया उससे गेहूं को पीस का आटा बनाती है और फिर अपना पेट भरती है। यानि की इसका साफ मतलब ये है कि कबीर फिजूल की बातों और अंधविश्वास से दूर रहने की सलाह दे रहे हैं।

5. मल मल धोए शरीर को, धोए न मन का मैल ।

नहाए गंगा गोमती, रहे बैल के बैल ।।

कबीर जी कहते हैं कि लोग शरीर का मैल अच्छे से मल मल कर साफ़ करते हैं लेकिन मन का मैल कभी साफ़ नहीं करते। कबीर दास इस दोहे को बताते हुए उन जातिवादियों की बखिया उधेड़ रहे है, जिनमें कहा जाता है कि गंगा जैसी नदियों में नहाने से सारे पाप धुल जाते हैं। कबीर का मानना है कि पाप धोने के इस विचार ने अन्याय को और बढ़ावा दिया है। क्योंकि शोषणकारी को लगता है कि वो मेहनतकश तबके पर पहले ज़ुल्म कर ले और फिर धार्मिक रूप से उसका कुछ नुक़सान नहीं होगा। वे गंगा जैसी नदियों में नहाकर, हवन-पूजा करके अपने सारे कुकर्मों को धो डालेंगे।

कबीर दास जी के ये दोहे बचपन से ही हम पढ़ रहे है। अपने स्कूल, कॉलेजों की किताबों में, हालांकि इसके मतलब को लेकर आपकी क्या राय है। क्या कबीर दास ने सही कहा है… हमें कमेंट कर जरूर

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here