अपराध होने के कितने समय भीतर FIR दर्ज कराई जा सकती है?

FIR की समय सीमा क्या होती है
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FIR की समय सीमा क्या होती है – जब भी अपराध होता है तब अपराध के कुछ समय बाद पुलिस की एंट्री होती है और पुलिस इस मामले की FIR भी दर्ज करती है और मामले की जाँच करती है लेकिन कई बार ऐसा होता है कि किसी व्यक्ति के साथ कोई घटना घटित होती है और वो व्यक्ति अपराध होने के कई समय बाद FIR दर्ज करता है या कई सालों बाद भी FIR दर्ज करवाने थाने जाता है. जहाँ पर उससे कई सरे सवाल किए जाते हैं. वहीं इस पोस्ट के जरिए हम आपको आज इस बात कि जानकारी देने जा रहे हैं अपराध होने के कितने दिनों के भीतर FIR दर्ज होनी चाहिए.

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जानिए क्या है FIR

FIR एक लिखित दस्तावेज हैं जिसमें अपराध के बारे में पूरी जानकारी होती है और इस FIR के जरिए ही पुलिस जाँच शुरू करती है और कोर्ट में चर्गेशीत दाखिल कर केस शुरू होता है. वहीं FIR दर्ज करने के लिए अपराध के बारे में पूरी जानकारी होना जरुरी नहीं है. लेकिन FIR दर्ज कराने वाला व्यक्ति के पास जितनी भी जानकारी है वो  पुलिस को दे दे। इसी के साथ अपराध का शिकार होने वाला व्यक्ति, पीड़ित का कोई रिश्तेदार या दोस्त या परिचित, या यदि किसी व्यक्ति के पास एक अपराध के बारे में ज्ञान है, जो होने वाला है या हो चुका है तो ऐसे व्यक्ति एक FIR दर्ज करा सकते हैं।

अपराध के कितने समय बाद कर सकते हैं FIR

भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 468 में कुछ प्रावधान के अनुसार, यदि अपराध केवल जुर्माने से संबंधित है तो 6 महीने के भीतर FIR दर्ज करवा सकते हैं. यदि किसी अपराध में 1 साल की सजा का कानून है तो FIR दर्ज करने की समय 1 वर्ष तक का है. ऐसा ही किसी अपराध में 3 साल की सजा का कानून है तो FIR दर्ज करने की समय 3 साल तक का है.

3 साल से ज्यादा सजा पर नहीं कोई समय सीमा  

इसी के साथ किसी अपराध की सजा 3 साल से अधिक है तो कारावास से FIR दर्ज करने की अवधि 3 साल तक है और यदि अपराध ऐसा है जिसमे “3 साल से अधिक सजा का प्रावधान है तो उसके लिए FIR  दर्ज करवाने की कोई समय सीमा नहीं है लेकिन कोर्ट द्वारा पूछे जाने पर इस बात की जानकारी देनी होगी कि अपराध होने के इतने समय बाद FIR क्यो दर्ज करवाई गयी. वहीँ अगर आप बाताई गयी अवधि के अनुसार, FIR दर्ज करवाते है तो FIR दर्ज नहीं होगी.

FIR की समय सीमा क्या होती है

इसी के साथ किसी केस में कई धारायें लगी है तो Cr.P.C की धारा 468 की उपधारा 3 के अनुसार, जिस भी धारा में सज़ा की अवधि अधिक है उसी अवधि को मानते हुए FIR दर्ज करने की समय सीमा तय हो जाएगी।

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