‘पोर्न बैन हो, रेपिस्टों को नपुंसक बनाया जाए’…… Supreme Court ने महिलाओं की सुरक्षा को लेकर जनहित याचिका पर केंद्र और राज्यों को जारी किया नोटिस

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Supreme Court PIL: सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं की सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर एक जनहित याचिका पर केंद्र और राज्यों को नोटिस जारी किया है। इस याचिका में सार्वजनिक परिवहन में महिलाओं के लिए सामाजिक व्यवहार के विनियमन, मुफ्त ऑनलाइन पोर्नोग्राफिक सामग्री पर प्रतिबंध, और महिलाओं एवं बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों के दोषियों को नपुंसक बनाने की मांग की गई है। कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई करते हुए केंद्र और राज्यों से जवाब मांगा है, और मामले को जनवरी 2025 के लिए सूचीबद्ध किया है।

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याचिका में उठाए गए मुद्दे- Supreme Court PIL

लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, याचिकाकर्ता महालक्ष्मी पावनी (सुप्रीम कोर्ट महिला वकील संघ – SCWLA की अध्यक्ष) ने कोर्ट से यह आग्रह किया कि महिलाओं के खिलाफ होने वाले यौन अपराधों के लिए सख्त दिशा-निर्देश और सुधारों की आवश्यकता है। पावनी ने तर्क दिया कि देश में कई सख्त कानून हैं, लेकिन क्या वे सही तरीके से लागू हो रहे हैं, यह एक बड़ा सवाल है। खासतौर पर, सड़कों पर रहने वाली महिलाओं और कमजोर वर्ग की महिलाओं के लिए सुरक्षा सुनिश्चित करना बेहद जरूरी है।

रेपिस्टों को केमिकल तरीके से नपुंसक बनाया जाए

याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता महालक्ष्मी पवन ने न्यायालय को बताया कि 2012 में सामूहिक बलात्कार की घटना के बाद से महिलाओं के साथ बलात्कार और हत्याएं वर्षों से जारी हैं। वरिष्ठ अधिवक्ता महालक्ष्मी ने कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज में एक मेडिकल छात्रा की हत्या और बलात्कार का मामला भी उठाया। मीडिया ने आरजी कर बलात्कार मामले के बाद भी हुई 94 घटनाओं पर ध्यान नहीं दिया और न ही उन्हें उजागर करने की जहमत उठाई। उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय से महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए निर्णायक कदम उठाने का आग्रह किया।

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इसके लिए सख्त दंड और कानून बनाया जाना चाहिए, और उनके सफल कार्यान्वयन की गारंटी दी जानी चाहिए। उन्होंने मांग किया कि रेप जैसे यौन अपराधियों की सजा के रूप में केमिकल तरीके से नपुंसक बनाया जाए। पोर्नोग्राफी पर रोक लगाई जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट महिला वकील संघ की अध्यक्षता याचिकाकर्ता वरिष्ठ अधिवक्ता महालक्ष्मी पावनी कर रही हैं।

कोर्ट की टिप्पणी और प्रतिक्रिया

सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ, जिसमें जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्जल भुयान शामिल थे, ने आदेश पारित करते हुए कहा कि याचिका में कुछ प्रार्थनाएं “बर्बर” हैं और इन्हें कोर्ट से छूट नहीं मिल सकती। हालांकि, याचिकाकर्ता के वकील ने स्वीकार किया कि अदालत जो उचित समझे, उसे लेकर प्रतिबंध लागू किया जा सकता है।

सरकार से अपेक्षाएं

इस मामले पर सुनवाई के दौरान, पवनी ने यह भी कहा कि जनहित याचिका में उठाए गए मुद्दे “नए” हैं और इन पर गहरे विचार की आवश्यकता है। उन्होंने यह तर्क दिया कि महिला सुरक्षा के लिए जो कानूनी उपाय मौजूद हैं, उन पर उचित कार्यवाही सुनिश्चित करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए।

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अगली सुनवाई

फिलहाल, कोर्ट ने इस मामले को जनवरी 2025 में फिर से सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है, जिसमें सरकार को महिला सुरक्षा के लिए सुझाए गए दिशा-निर्देशों और उपायों पर अपना पक्ष रखने का समय मिलेगा।

यह मामला महिलाओं की सुरक्षा को लेकर एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे मुद्दों पर गहरी चिंता जताई है, जो भारतीय समाज में लगातार महिला उत्पीड़न और यौन अपराधों की बढ़ती घटनाओं से जुड़े हुए हैं।

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