हमारे देश में कम ही केस में फांसी की सजा दी जाती है। जब अपराध सभी सीमाओं को लांग जाए, तो दोषी को फांसी के फंदे पर लटकाया जाता है। साल 2012 में निर्भया के साथ दरिंदगी की हदें पार करने वाले चार दोषियों को बीते साल फांसी के फंदे पर चढ़ाया गया था। लेकिन क्या आप जानते हैं कि देश की आजादी के बाद अब तक किसी भी महिला को फांसी नहीं दी गई है। लेकिन अब पहली बार ऐसा होने जा रहा है। उत्तर प्रदेश के अमरोहा की रहने वाली शबनम को ये सजा मिलेगी। पवन जल्लाद जिसने निर्भया के दोषियों को फांसी दी थी, वो इसके लिए दो बार निरीक्षण कर चुके हैं।
राष्ट्रपति ने खारिज की दया याचिका
दरअसल, साल 2008 में शबनम ने एक दिल दहला देने वाली वारदात को अंजाम दिया था, जिससे पूरा देश हिल गया था। शबनम ने अपने प्रेमी के सात मिलकर अपने ही 7 परिजनों की कुल्हाड़ी से काटकर हत्या कर दी थी। इस केस में निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक सभी ने फांसी की सजा को बरकरार रखा। वहीं इस सजा से बचने के लिए शबनम ने राष्ट्रपति से भी दया की गुहार लगाई। लेकिन उसकी दया याचिका वहां से खारिज हो गई। जिसके चलते अब शबनम को फांसी की सजा दी जाएगी और वो आजाद भारत के इतिहास की ऐसी पहली महिला होगी, जिसको ये सजा मिलेगी।
यूपी के इकलौते महिला फांसीघर जो मथुरा में स्थित है, वहां पर शबनम को फांसी के फंदे पर लटकाया जाएगा। हालांकि फांसी की तारीख अभी तय नहीं है और ना ही कोई आदेश जारी किया गया। लेकिन बताया जा रहा है डेथ वॉरेंट जारी होते ही शबनम को फांसी दी जाएगी। कौन हैं शबनम? क्यों अपने परिवारवालों को मारा? कैसे इस अपराध को यादकर आज ही लोगों की रूंह कांप उठती है? आइए आपको इस पूरे अपराध के बारे में बताते हैं…
प्यार में डूबी शबनम यूं पहुंची फांसी के फंदे तक
कहते हैं ना प्यार अंधा होता है। शबनम की कहानी पर गौर डाले तो ये बात सच लगती है। शबनम ने प्यार में पागल होकर प्रेमी के साथ मिलकर अपने ही माता-पिता 10 महीने के मासूम भतीजे समेत परिवार के सात लोगों की कुल्हाड़ी से काटकर बेरहमी से हत्या कर दी। अमरोहा से हसनपुर क्षेत्र के गांव के बावनखेड़ी में रहने वाले शिक्षक शौकत अली की शबनम इकलौती बेटी थीं। पिता शौकित अली ने अपनी बेटी शबनम को बड़े ही प्यार से पाला-पोसा था। उन्होनें अपनी बेटी को अच्छी तालीम दिलवाई। लेकिन पिता शौकित को कहां पता था कि एक दिन उनकी ही बेटी उनके और परिवार की इस कदर जान ले लेगी।
दरअसल, शबनम को गांव के ही आठवीं पास युवक सलीम से प्यार हो गया था। दोनो एक-दूसरे के प्यार में इस कदर डूब गए थे कि फिर उन्हें किसी भी परवाह नहीं। दोनों एक दूसरे से शादी करना चाहते थे। लेकिन अलग बिरादरी के होने की वजह से शबनम के परिवार को ये रिश्ता मंजूर नहीं था। शबनम सैफी तो सलीम पठान बिरादरी से था।
परिवार की नामंजूरी शबनम को बर्दाश्त नहीं हुई। उसने सलीम से मिलने के लिए परिवारवालों को नींद की गोलियां खिलानी शुरू कर दी। जब परिवारवाले इन गोलियों को खाकर बेहोश हो जाते थे, तो वो सलीम को अपने घर बुला लिया करती थी। लेकिन ज्यादा दिनों तक ऐसा कर पाना संभव नहीं था। जिसके बाद शबनम और सलीम ने मिलकर इस खूनी खेल की साजिश रची। 14 अप्रैल 2008 को शबनम ने अपने परिवारवालों को नींद की गोली दी और सुला दिया। इस दिन शबनम की फुफेरी बहन राबिया भी वहां पर आई हुई थी। जब परिवारवाले नशे की हालत में सो रहे थे, उसी दौरान इन दोनों ने मिलकर शबनम के पिता शौकत, मां हाशमी, भाई अनीस, राशिद, भाभी अंजुम, फुफेरी बहन राबिया और दस महीने के भतीजे अर्श का गला काटकर इन सभी को मौत की नींद सुला दिया।
घटना को अंजाम देने के बाद सलीम फरार हो गया। सुबह जब शबनम ने शोर मचाया, तो गांववाले इकट्ठा हुए। जब ग्रामीणों ने घर में 7 सिर कटी हुए लाशें देखीं तो आंखे फटी की फटी रह गई। शबनम ने इस दौरान कहा कि बदमाशों के घर में घुसकर इस वारदात को अंजाम दिया। लेकिन शक की सुई शबनम के इर्द-गिर्द ही घुमती रहीं। घटना के चौथे दिन पुलिस ने शबनम और सलीम को हिरासत में लेकर पूछताछ की तो दोनों ने अपने गुनाह को कबूल कर लिया। इस मामले में स्थानीय अदालत ने शबनम और सलीम को फांसी की सजा सुनाई। सर्वोच्च अदालत ने भी सजा को बरकरार रखा और राष्ट्रपति ने भी दया याचिका ठुकरा दी।