उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ स्थित संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआईएमएस लखनऊ) की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. रुचिका टंडन के साथ डिजिटल गिरफ्तारी के जरिए अब तक की सबसे बड़ी ठगी हुई है। सात दिनों के अंदर उनके साथ करीब तीन करोड़ रुपये की ठगी की गई है। साइबर क्राइम की शिकार हुई एसोसिएट प्रोफेसर ने बताया कि साइबर ठगों ने उन्हें सात दिनों तक ‘डिजिटल रूप से गिरफ्तार’ करके 2.81 करोड़ रुपये ठग लिए। आइए आपको बताते हैं कि डिजिटल गिरफ्तारी क्या होती है और एसोसिएट प्रोफेसर के साथ इतनी बड़ी ठगी कैसे हुई।
पीड़िता ने बताई आपबीती
अपनी आपबीती बताते हुए डॉ. रुचिका टंडन ने कहा, ‘मुझे सुबह एक कॉल आया जिसमें कॉल करने वाले ने खुद को ट्राई (भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण) से बताया और मुझे बताया कि पुलिस के निर्देशानुसार मेरा फोन बंद कर दिया जाएगा, क्योंकि लोगों को परेशान करने वाले संदेश भेजने के लिए मुंबई साइबर क्राइम सेल में मेरे नंबर के खिलाफ कई शिकायतें दर्ज की गई हैं…‘
PGI लखनऊ की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. रुचिका टंडन को साइबर ठगों ने सात दिनों तक ‘डिजिटल अरेस्ट’ करके रखा.
ठगों ने रुचिका से 2.81 करोड़ ठग लिए। पूरी कहानी सुनिए… pic.twitter.com/74Vh0D4Ah7
— Govind Pratap Singh | GPS (@govindprataps12) August 14, 2024
डॉक्टर ने बताया कि ‘फिर उन्होंने मेरी बात एक तथाकथित आईपीएस अधिकारी से करवाई, जिसने मुझे बताया कि मेरा एक बैंक खाता 7 करोड़ रुपए की मनी लॉन्ड्रिंग जैसी अवैध गतिविधियों से जुड़ा हुआ है। उसने कहा कि उसे मुझे तुरंत गिरफ्तार करने के आदेश मिले हैं, और अगर मैं उनके पास नहीं आया, तो वे मुझे ‘डिजिटल अरेस्ट‘ में ले लेंगे। फिर उन्होंने मेरी बात एक सीबीआई अधिकारी से करवाई। उन्होंने मुझसे यह भी कहा कि मैं इस बारे में किसी को न बताऊँ, क्योंकि यह राष्ट्रीय महत्व का मामला है।‘
इसके बाद जालसाज ने महिला से कहा कि उसके बैंक खाते में मौजूद सभी पैसे एक तथाकथित सरकारी खाते में भेजने होंगे, जिसके बाद महिला ने जालसाज के खाते में 2.81 करोड़ रुपये भेज दिए। जब उसे ठगी का अहसास हुआ तो वह मीडिया के सामने आई।
क्या होता है Digital Arrest?
अब बात करते हैं कि आख़िर ये डिजिटल गिरफ़्तारी क्या है। इस घटना के बारे में बात करते हुए साइबर पुलिस स्टेशन लखनऊ के जांच अधिकारी गुलाम ने बताया कि कानूनी तौर पर “डिजिटल गिरफ़्तारी” जैसी कोई चीज़ नहीं है, लेकिन साइबर अपराधी अब बड़े नामों का इस्तेमाल करके लोगों को धमकाते हैं। अगर किसी जाने-माने जांचकर्ता का नाम लिया जाता है, तो लोग घबरा जाते हैं, उन्हें लगता है कि उनका नाम किसी मामले में सामने आया है। वे पीड़ितों को वीडियो कॉल करने के लिए स्काइप डाउनलोड करने के लिए मजबूर करते हैं, जिसके दौरान वे अपनी पहचान और चेहरे को छिपाते हुए पुलिस अधिकारी होने का दिखावा करते हैं। पीड़ित की सारी जानकारी इकट्ठा करने के बाद, वे उन्हें सूचित करते हैं कि उन्हें हिरासत में लिया गया है और उन्हें किसी से बात करने की अनुमति नहीं है – यहां तक कि फोन पर भी नहीं।
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