Kusuma Nain Biography: चंबल के बीहड़ों में एक समय खूंखार डकैत के रूप में कुख्यात कुसुमा नाइन की मौत के बाद उसके अत्याचार झेल चुके लोगों ने जश्न मनाया। उत्तर प्रदेश के जालौन जिले के टिकरी गांव में जन्मी कुसुमा, जो एक समय गांव प्रधान की बेटी थी, बाद में डकैत बनी और अपराध की दुनिया में आतंक का दूसरा नाम बन गई।
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1 मार्च 2025 को टीबी की बीमारी से जूझ रही कुसुमा नाइन की लखनऊ के केजीएमयू अस्पताल में मौत हो गई। लेकिन उसकी मौत के बाद जो हुआ, वह किसी के लिए हैरान करने वाला था – ओरैया के अस्ता गांव के लोगों ने उसकी मौत की खबर पर खुशी मनाई, घी के दीये जलाए और मिठाइयां बांटी।
गांव प्रधान की बेटी से खूंखार डकैत बनने तक का सफर- Kusuma Nain Biography
कुसुमा नाइन का जन्म 1964 में उत्तर प्रदेश के जालौन जिले के टिकरी गांव में हुआ था। उसके पिता गांव के प्रधान थे और राशन की दुकान चलाते थे। कम उम्र में ही उसे अपने पड़ोसी माधव मल्लाह से प्रेम हो गया, और 13 साल की उम्र में वह प्रेमी के साथ घर छोड़कर दिल्ली भाग गई।
दिल्ली भागने के बाद उसके पिता ने उसे और उसके प्रेमी को दिल्ली पुलिस से पकड़वा दिया और साथ ही दोनों पर डकैती का झूठा केस लगाकर जेल भिजवा दिया। यह उसकी जिंदगी का पहला मोड़ था।
तीन महीने जेल में रहने के बाद जब वह घर लौटी, तो पिता ने समाज में बदनामी के डर से उसकी शादी जबरन करेली गांव के केदार नाई से करवा दी। लेकिन न तो कुसुमा खुश थी, न ही माधव। माधव उसे ससुराल से उठा ले गया, और इस बार वह खूंखार डकैत विक्रम मल्लाह की गैंग का हिस्सा बन गई।
फूलन देवी से दुश्मनी और विक्रम मल्लाह की हत्या
विक्रम मल्लाह के गैंग में शामिल होते ही कुसुमा को सबसे बड़ी चुनौती मिली फूलन देवी से। कई रिपोर्ट्स के अनुसार, फूलन देवी को कुसुमा पसंद नहीं थी, और उसने उसे अपमानित करना शुरू कर दिया। यहां तक कि उसका प्रेमी माधव भी फूलन का साथ देने लगा।
इसी दौरान लालाराम गैंग और विक्रम मल्लाह के बीच दुश्मनी तेज हो गई। फूलन देवी ने कुसुमा को लालाराम के गैंग में भेजने का प्लान बनाया, ताकि वह लालाराम को अपने प्रेमजाल में फंसाकर मार दे। लेकिन कुसुमा ने ठीक उलटा किया – उसने लालाराम का साथ देकर विक्रम मल्लाह को मरवा दिया।
इस झगड़े में माधव मल्लाह भी मारा गया, लेकिन फूलन देवी बच निकली। बाद में फूलन देवी ने बेहमई गांव में 22 राजपूतों को लाइन में खड़ा कर गोलियों से भून दिया, जिसने पूरे देश को हिला दिया।
बदले की आग – 12 मल्लाहों को मारकर जलाए घर
फूलन देवी की इस हरकत से लालाराम और कुसुमा नाइन को गहरा झटका लगा। उन्होंने बदला लेने की ठानी। लेकिन फूलन देवी ने 1982 में आत्मसमर्पण कर दिया, जिससे कुसुमा का बदला लेना मुश्किल हो गया।
फिर भी, 1984 में कुसुमा ने अस्ता गांव में 12 मल्लाहों को एक लाइन में खड़ा कर गोलियों से भून दिया। इसके अलावा उसने कई घरों को आग के हवाले कर दिया, जिसमें एक महिला और बच्चा जिंदा जल गए।
डकैत फक्कड़ बाबा की प्रेमिका बनी, फिर बन गई सबसे खतरनाक महिला डकैत
इसके बाद एक बहस के चलते कुसुमा ने लालाराम की गैंग छोड़कर राम आश्रय तिवारी उर्फ फक्कड़ बाबा के गिरोह में शामिल हो गई। वह इतनी क्रूर हो चुकी थी कि अपने ही पति केदार नाई को पीट-पीटकर अधमरा कर दिया।
फक्कड़ बाबा के साथ रहते हुए वह हथियार चलाने में और निपुण हो गई। उसने हैंड ग्रेनेड तक चलाने की ट्रेनिंग ली, और एक बार अकेले ही तीन पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी।
1995 में उसने पूर्व एडीजी हरदेव आदर्श शर्मा का अपहरण कर लिया, और 50 लाख की फिरौती मांगी। जब पैसे नहीं मिले, तो उसने उन्हें गोली मारकर उनकी लाश नहर में फेंक दी।
अब पुलिस के लिए वह नंबर-1 मोस्ट वांटेड बन चुकी थी। सरकार ने उस पर 35000 रुपये का इनाम घोषित कर दिया।
डकैत से सन्यासी बनी, फिर जेल में हुई मौत
2004 में फक्कड़ बाबा और कुसुमा नाइन दोनों ने आत्मसमर्पण करने की योजना बनाई। उनकी शर्त थी कि तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव सरेंडर के दौरान मौजूद रहें। हालांकि, मुलायम सिंह नहीं आ पाए, लेकिन सरेंडर हो गया और कुसुमा को उम्रकैद की सजा मिली।
जेल में कुसुमा पूरी तरह बदल गई। उसने गीता और रामायण का पाठ करना शुरू कर दिया। यहां तक कि “राम” लिखना भी सीख गई। पुलिस अधिकारी बताते हैं कि जो महिला सिर्फ हथियार चलाना जानती थी, उसने जेल में कलम पकड़ना भी सीख लिया।
कुसुमा नाइन की मौत और जश्न में नाचे लोग
कुसुमा टीबी की बीमारी से जूझ रही थी। 1 मार्च 2025 को उसकी मौत लखनऊ के केजीएमयू अस्पताल में हो गई।
लेकिन उसकी मौत पर शोक मनाने की जगह ओरैया के अस्ता गांव में जश्न का माहौल बन गया। यह वही गांव था, जहां उसने 12 लोगों की हत्या कर उनके घर जला दिए थे। गांववालों ने घी के दीये जलाए, मिठाइयां बांटी और मौत का जश्न मनाया।