उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में दो दलित लड़कियों के शव पेड़ से लटके मिलने से एक बार फिर पूरे देश में दहशत फैल गई है। कोलकाता में मेडिकल छात्रा के साथ हुए बलात्कार को लेकर देशभर में गुस्सा अभी कम नहीं हुआ है और अब उत्तर प्रदेश से एक और दिल दहला देने वाली घटना सामने आई है। 15 और 18 साल की दो सहेलियां 26 अगस्त को मंदिर में जन्माष्टमी के कार्यक्रम में बड़े उत्साह के साथ शामिल होने के बाद घर नहीं लौट पाईं। लेकिन बाद में दोनों का शव एक पेड़ से लटका मिला। इसके बाद शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज गया। बुधवार को, चिकित्सा पेशेवरों के एक समूह ने घोषणा की कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला है कि दोनों लड़कियों की मौत दम घुटने से हुई थी, जिससे पता चलता है कि उन्होंने आत्महत्या की थी। साथ ही, मृत लड़कियों में से एक के माता-पिता ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट को खारिज कर दिया। पिता के अनुसार, पोस्टमार्टम रिपोर्ट फर्जी है और इसमें फर्जी जानकारी दी गई है।
परिजनों को दी गई सूचना
परिजनों ने बताया कि शाम को बारिश शुरू हो गई थी, इसलिए उन्हें लगा कि बारिश बंद होने के बाद बेटियां घर लौट आएंगी। लेकिन, देर रात तक दोनों बेटियां घर नहीं पहुंचीं तो परिजनों ने उनकी तलाश शुरू की। मंदिर में जाकर देखा तो बेटियां नहीं थीं। इसके बाद वे पड़ोस में अपने रिश्तेदारों से बेटियों के बारे में पूछने गए, लेकिन वहां भी उन्हें कोई जानकारी नहीं मिली। रात भर परिजन बेटियों की तलाश करते रहे, लेकिन कोई पता नहीं चला। सुबह पड़ोस की एक महिला ने मोहल्ले में बताया कि दूर स्थित आम के बगीचे में कोई इंसान फंदे से लटका हुआ है। सूचना मिलते ही परिजन वहां पहुंचे और वो शव उनकी ही बेटी का था। जिसके बाद इलाके में दहसत फैल गई। वहीं घटना को लेकर पुलिस को भी सूचित किया गया।
मौके पर पहुंची पुलिस
पुलिस ने मौके पर पहुंचकर शवों को तुरंत हटाया और पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल ले गई। यहां तक कि परिवार के सदस्यों को अपनी बेटियों के शव को छूने से भी मना किया गया। अधिकारियों के अनुसार, पहली नजर में यह घटना आत्महत्या प्रतीत होती है। हालांकि, लड़कियों के परिवार का मानना है कि उनके साथ बलात्कार किया गया और बाद में उनकी हत्या कर दी गई। दरअसल, पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट आने के बाद जब महिलाओं ने अपनी बेटियों की अंतिम यात्रा के लिए उनके कपड़े बदले तो उन्होंने पाया कि उनकी बेटियों के शरीर पर कीलों के निशान थे, एक की पीठ पर डंडे से वार किया गया था, दूसरी की पीठ पर बेल्ट के निशान थे और शरीर में कांटे चुभे हुए थे। इन सब निशानों की वजह से परिवार को शक हुआ कि उनकी बेटियों के साथ जरूर कुछ गलत हुआ है। लेकिन पुलिस उनकी बात मानने को तैयार नहीं थी।
वहीं, परिवार के सदस्यों पर पुलिस का दबाव था कि वे जल्द से जल्द शवों का अंतिम संस्कार कर दें। पुलिस ने परिवार की अनुमति के बिना शवों को ले जाकर 12-13 किलोमीटर दूर एक घाट पर जला दिया, जबकि परिवार के सदस्य पुलिस के आकलन से सहमत नहीं थे। बेटियों का परिवार उनके साथ नहीं गया। इससे यह अनुमान मजबूत होता है कि प्रशासन हाथरस की तरह फर्रुखाबाद की घटना को छिपाने और यह दिखाने की कोशिश कर रहा है कि यह आत्महत्या थी। इसके अलावा, इस त्रासदी के बारे में कई अन्य अनुत्तरित मुद्दे हैं। उदाहरण के लिए, पुलिस ने परिवार को अभी तक पोस्टमार्टम रिपोर्ट क्यों नहीं दी है? पुलिस इतनी जल्दी सबूत क्यों नष्ट कर रही थी?
हाथरस जैसी घटना
इस घटना ने पिछले साल हाथरस की घटना की याद ताजा कर दी है, जहां एक दलित लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया, उसकी जीभ काट दी गई और रीढ़ की हड्डी तोड़ दी गई, लेकिन पुलिस आरोपियों को बचाने में लगी रही। लड़की की मौत के बाद, परिजनों की अनुपस्थिति में और उनकी अनुमति के बिना, पुलिस ने आनन-फानन में रात में ही उसका अंतिम संस्कार कर दिया।