भारत में रिश्वतखोरी हद से ज्यादा बढ़ गई है। इससे निपटने के लिए चाहे कितने भी प्रयास कर लिए जाएं, लेकिन कहीं न कहीं सभी जानते हैं कि अगर रिश्वत नहीं होगी तो सरकारी काम नहीं होगा। कई पुलिस कर्मी इसका फायदा उठाते हैं और लोगों से रिश्वत लेते हैं और उन्हें अपना काम जल्दी करवाने की सुविधा ऑफर करते हैं। ऐसा ही एक मामला गुजरात में भी हुआ था। जो करीब 10 साल पुराना है। दरअसल, मोरबी जिले के मालिया थाने का एक कांस्टेबल एक महिला से पासपोर्ट वेरिफिकेशन के लिए 500 रुपये की रिश्वत मांगता है। और फिर इस पुलिसकर्मी को एसीबी द्वारा 500 रुपये की रिश्वत लेते रंगे हाथों पकड़ लिया जाता है। इसके बाद उसके खिलाफ केस दर्ज किया जाता है। मामला 2014 का था लेकिन इस मामले में कोर्ट का फैसला 2024 में आया। फैसले में कोर्ट ने गुजरात के मोरबी जिले के रिश्वतखोरी मामले में आरोपी पुलिसकर्मी को दोषी पाया और उसे 5 साल कैद की सजा सुनाई।
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पासपोर्ट वेरिफिकेशन से जुड़ा था मामला
जानकारी के मुताबिक, शिकायतकर्ता मनोज की भाभी पूजा को अपने पति से मिलने के लिए 2014 में नैरोबी जाना था। जिसके लिए पासपोर्ट बनाने की प्रक्रिया में दस्तावेजीकरण चाहिए थे। पुलिस वेरिफिकेशन इस प्रक्रिया का हिस्सा है। 17 मार्च 2014 को पूजा को इस बारे में मालिया पुलिस स्टेशन से कॉल आया। जब पूजा पुलिस स्टेशन पहुंची, तो कांस्टेबल अमरतभाई ने उससे एक दस्तावेज पर हस्ताक्षर करने का आदेश दिया और फिर उससे 500 रुपये का भुगतान करने की मांग की। पूजा ने सवाल किया कि उसे अब पैसे देने की क्या जरूरत है, जबकि उसने पहले ही सभी प्रक्रियाओं और खर्चों का भुगतान कर दिया था।
पुलिसकर्मी ने मांगी रिश्वत
इसके बाद पुलिसकर्मी अमरत मकवाना ने दूसरे दिन फोन करके बताया कि जब तक वे 500 रुपए नहीं देंगे, तब तक उन्हें पासपोर्ट नहीं मिल पाएगा। हालांकि, पूजा ने मांगी गई रिश्वत देने से इनकार कर दिया। इसके बाद मनोज ने एंटी करप्शन ब्यूरो में शिकायत दर्ज कराई और जाल बिछाकर एसीबी दस्ते ने रिश्वत ले रहे पुलिसकर्मी को हिरासत में ले लिया।
कोर्ट ने सुनाई 5 साल की सजा
इस मामले में प्रधान सत्र न्यायाधीश और विशेष न्यायाधीश (एसीबी) दोनों ने दलीलें सुनीं। इस दौरान सरकारी वकील विजय जैनीन ने अदालत में सात मौखिक और पैंतीस लिखित साक्ष्य पेश किए। इसके आधार पर अदालत ने मालिया थाने के कांस्टेबल अमर्त मकवाना को दोषी पाया। भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत आरोपी अमरत मकवाना को अदालत ने दोषी पाया और पांच साल की कठोर सजा के साथ एक हजार रुपये का जुर्माना लगाया।
रिश्वतखोरी में सबसे ऊपर भारत
एशिया-प्रशांत क्षेत्र में रिश्वतखोरी के मामले में भारत सबसे आगे है। राजनीति और नौकरशाही में सबसे ज़्यादा भ्रष्टाचार है। इसके अलावा पुलिस, सेना, न्यायपालिका और मीडिया में भी काफ़ी भ्रष्टाचार है। यहाँ रिश्वतखोरी की दर 39% है। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के एक सर्वे के मुताबिक, रिश्वत देने वाले लगभग आधे लोगों से रिश्वत मांगी गई थी। वहीं, व्यक्तिगत संबंधों का इस्तेमाल करने वाले 32% लोगों ने कहा कि अगर वे ऐसा नहीं करते तो उनका काम नहीं होता। चौंकाने वाली बात यह है कि रिश्वत देने वाले ज़्यादातर लोग अमीर लोग नहीं होते। सर्वेक्षण में 16 देशों के 20 हजार से अधिक लोगों ने स्वीकार किया कि उन्हें सार्वजनिक सेवाओं के लिए साल में कम से कम एक बार रिश्वत देनी पड़ती है।
भ्रष्टाचार में ये भी कम नहीं
सर्वेक्षण के अनुसार, सरकारी कर्मियों में पुलिस अधिकारी सबसे भ्रष्ट थे। 85 प्रतिशत उत्तरदाताओं का मानना था कि पुलिस भ्रष्ट होती है। साथ ही, 71 प्रतिशत भारतीयों ने कहा कि सभी या अधिकांश धार्मिक नेता भ्रष्ट थे, जबकि 14 प्रतिशत ने संकेत दिया कि कोई भी धार्मिक नेता भ्रष्ट नहीं था और 15 प्रतिशत को पता ही नहीं था कि वे भ्रष्ट थे। पुलिस के बाद, व्यवसायी (79%), सरकारी अधिकारी (84%), स्थानीय पार्षद (78%) और संसद सदस्य (76%) पाँच सबसे भ्रष्ट श्रेणियाँ थीं, जबकि कर अधिकारी (74%) छठे स्थान पर थे।
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