CBI की जांच के बाद आया फैसला
Ghaziabad police crime : उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh), यहाँ की पुलिस और सरकार एनकाउंटर करने के लिए जानी जाती है, लेकिन किसी निर्दोष को मारने की बात बहुत कम ही सामने आई है। केंद्रीय जांच ब्यूरो के विशेष न्यायाधीश परवेंद्र कुमार शर्मा (CBI judge Pravendr Kumar Sharma) ने गाजियाबाद (Ghaziabad ) के एटा में हुए 16 साल पहले फर्नीचर कारीगर राजाराम की हत्या पर अपना फैसला सुना दिया है। जज परवेंद्र कुमार ने अपने फैसले में नौ पुलिसकर्मियों को दोषी ठहराया है।
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मजदूरी करवा कर नहीं दिया था पैसा
पुलिस पर आरोप है था की उन्होंने राजाराम को गलत आधार पर गिरफ्तार किया और उसका एनकाउंटर (police encounter) कर दिया। कहानी शुरू होती है 2006 में जब सिपाही राजेंद्र (Rajendra) ने राजाराम से अपने घर की रसोई में काम करवाया और पैसा देने से इंकार कर दिया। इसके बाद जब राजाराम मजदूरी लेने पर अड़ गया, तो राजेंद्र ने अपने पुलिस होने का फायदा उठाया और सिढ़पुरा थाने के अन्य पुलिसकर्मियों के साथ मिलकर साजिश रची। राजाराम को गिरफ्तार कर उसके बाद उसे लुटेरा दिखा दिया। पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया और उसका एनकाउंटर कर दिया।
- 202 लोगों ने दी थी गवाही
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने इस मामले की सीबीआई जांच का आदेश दिया था। इस मामले पर 2009 में अदालत में आरोप पत्र दाखिल किया गया था। इसके बाद 13 साल इस मामले पर सुनवाई चली जिसमें 202 लोगों की गवाही के बाद साबित हुआ की पुलिस ने मजदूर को गलत आरोप में गिरफ्तार किया और उसकी हत्या कर दी।
पूछताछ के नाम पर गिरफ्तार किया था राजराम को
अनुराग मोदी जो की CBI के विशेष लोक अभियोजक हैं उन्होंने अदालत को बताया कि हाईकोर्ट में दर्ज इल्जामों में राजाराम की पत्नी संतोष कुमारी द्वारा दिए गए बयान में यह बताया था कि उसके पति थाना सिढ़पुरा जिला एटा के पुलिसकर्मी पवन सिंह, पालसिंह ठेनुवा, अजंट सिंह, सरनाम सिंह और राजेन्द्र प्रसाद ने अगस्त 18, 2006 को दोपहर तीन बजे उठा लिया था। उस समय राजाराम अपने परिवार के साथ अपनी बीमार बहन को देखने जा रहे थे।
निर्दोष को लुटेरा बता किया एनकाउंटर
राजाराम की पत्नी ने यह भी बताया की उसने अपने पति को छुड़ाने की कोशिश भी की थी लेकिन पुलिस यह कह कर राजाराम को उठा ले गई की पूछताछ के लिए ले जा रही है। जबकि 8 अगस्त 2006 को थाना सिढ़पुरा की पुलिस ने एक लुटेरे की मुठभेड़ में मरने की खबर बताई। जब लुटेरे की शिनाख्त की गई तो वह राजाराम निकला। इसके और कई अन्य गवाहों के आधार पर जज ने नौ पुलिस कर्मियों को सजा सुनाई। अगर राजाराम के इतिहास को खंगाला जाये तो किसी भी थाने में उसके खिलाफ कोई केस दर्ज नहीं थी।
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