Supreme Court News: रसिक चंद्र मंडल का जन्म 1920 में पश्चिम बंगाल के मालदा जिले के एक छोटे से गांव में हुआ था। उनके जन्म के समय भारत में असहयोग आंदोलन (Non-cooperation movement in India) अपने चरम पर था। आज, एक सदी बाद, वे भारतीय न्यायपालिका में अपनी आजादी के लिए लड़ रहे हैं। वे 1994 से एक हत्या के मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं।
हत्या का मामला और आजीवन कारावास- Supreme Court News
मंडल को 1988 के एक हत्या के मामले में 1994 में दोषी ठहराया गया था, तब उनकी उम्र 68 साल थी। उम्र संबंधी बीमारियों के कारण उन्हें और कमज़ोर होने के कारण उन्हें बालुरघाट सुधार गृह में स्थानांतरित कर दिया गया था। 2018 में, कलकत्ता उच्च न्यायालय और बाद में सर्वोच्च न्यायालय में उनकी दोषसिद्धि के खिलाफ उनकी अपील खारिज कर दी गई थी।
2020 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की
मंडल ने 2020 में सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिका दायर की थी। उन्होंने अपनी उम्र और स्वास्थ्य का हवाला देते हुए समय से पहले रिहाई की मांग की थी। उन्होंने पैरोल या सजा में छूट के लिए 14 साल जेल में बिताने के नियम से छूट की अपील की थी।
स्वास्थ्य रिपोर्ट और अंतरिम जमानत का आदेश
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने पश्चिम बंगाल सरकार को 2021 में मंडल की स्वास्थ्य स्थिति पर एक रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया। शुक्रवार, 1 दिसंबर 2024 को मामले की फिर से सुनवाई हुई। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने पश्चिम बंगाल सरकार के वकील से मंडल की स्थिति के बारे में जानकारी मांगी।
सरकारी वकील ने कहा कि मंडल की स्वास्थ्य स्थिति स्थिर है, लेकिन उनकी उम्र के कारण स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं बनी हुई हैं। सुप्रीम कोर्ट ने मंडल की याचिका स्वीकार कर ली और उन्हें अंतरिम जमानत और पैरोल पर रिहा करने का आदेश दिया।
परिवार के साथ अंतिम दिन बिताने की अपील
104 वर्षीय मंडल (104 Year Old Rasik Mandal Case) ने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया था कि उन्हें अपने जीवन के अंतिम दिन अपने परिवार के साथ बिताने का मौका दिया जाए। उन्होंने अपने बेटे के माध्यम से यह याचिका दायर की थी। इतना ही नहीं उन्होंने कहा कि वह जल्द ही अपना 104वां जन्मदिन भी मनाएंगे।
25 साल लंबा मामला
मंडल के मामले में ट्रायल कोर्ट ने उन्हें 1994 में दोषी ठहराया था। इसके तुरंत बाद उन्होंने हाईकोर्ट में अपील की, लेकिन हाईकोर्ट को उनकी सजा पर फैसला करने में 25 साल लग गए। 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने उनकी अपील खारिज कर दी।
न्यायपालिका का मानवीय चेहरा
104 साल की उम्र में मंडल की रिहाई का यह आदेश भारतीय न्यायपालिका (Supreme Court) के मानवीय पहलू को उजागर करता है। यह फैसला उनके जीवन के अंतिम दिन अपने परिवार के साथ बिताने की इच्छा को पूरा करने की दिशा में एक सकारात्मक कदम है।