अपने ही बच्चे पर किया रिसर्च
इंसान जैसे-जैसे विकसित हो रहा वैसे-वैसे उनका रिसर्च (Research) का स्तर भी एडवांस्ड होता जा रहा है। 26 जून, 1931 को, विन्थ्रोप नाइल्स केलॉग (Winthrop Niles Kellogg) नाम का एकअमेरिकी वैज्ञानिक (Scientist) अपनी पत्नी के साथ मिलकर एक रिसर्च करता है। इस रिसर्च में वह एक चिम्पैंजी (chimpanzee) के बच्चे को, अपने बच्चे के साथ बड़ा करने का निर्णय लेता है।
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क्या चिंपैंजी का बच्चा इंसानों की तरह विकसित हो सकता है?
केलॉग और उनकी पत्नी ने अपने ही बच्चे, डोनाल्ड (Donald) के साथ चिम्पैंजी (Gua) को पालने की योजना बनाई। जिसे आगे चल कर द साइकोलॉजिकल रिकॉर्ड में वर्णित किया गया था, दम्पति ने इस रिसर्च से ये पता लगाने की कोशिश की थी कि पर्यावरण ने मनाव विकास को कैसे प्रभावित किया है। उन्होंने दो सवालों को लेकर इस रिसर्च को आगे बढ़ाया , पहला क्या एक चिम्पांजी बड़ा होकर इंसान की तरह व्यवहार कर सकता है? या यह भी सोचें कि यह एक इंसान था?
चिम्पैंजी के बच्चे के साथ रखा अपने पुत्र को
अपने विद्यार्थी जीवन से ही केलॉग ऐसा प्रयोग करने का सपना देख रहे थे। वह जंगली बच्चों, या बिना किसी मानवीय संपर्क के, प्रकृति में पले-बढ़े लोगों के बारे में जानने केलिए उत्सुक्त रहते थे। केलॉग जानते थे कि एक मानव बच्चे को जंगल में छोड़ देना नैतिक रूप से निंदनीय और कम्यूमि गलत होगा, इसलिए उन्होंने विपरीत परिदृश्य पर प्रयोग करने का विकल्प चुना – एक शिशु जानवर को सभ्यता में लाना। जिससे वो अपने सवालों के कुछ और पास पहुंच सके। अगले नौ महीनों तक केलॉग और उनकी पत्नी ने डोनाल्ड और गुआ (चिम्पैंजी के बच्चे का नाम) पर अथक परीक्षण किया।
हर पहलु तथा गतिविधि पे रखी निगरानी
मनोवैज्ञानिक रिकॉर्ड के अनुसार उन्होंने दोनों बच्चों को ठीक उसी तरह से पाला, और दोनों पर वैज्ञानिक प्रयोगों किया जिसमें, “दोनों बच्चों का रक्तचाप, स्मृति, शरीर का आकार, स्क्रिबलिंग, रिफ्लेक्सिस, मुखरता, हरकत, हसना रोना” जैसे विषय शामिल थे। यहाँ तक दम्पति ने डोडों बच्चों का ताकत, मैनुअल निपुणता, समस्या समाधान, भय, संतुलन, खेल व्यवहार, चढ़ाई, आज्ञाकारिता, लोभी, भाषा की समझ, ध्यान अवधि, और अन्य,” सब कुछ नोट किया।
अपने समय से आगे का था यह रिसर्च
कुछ समय बाद देखा गया तो इन सभी चीजों में चिम्पैंजी का बच्चा इंसानी बच्चा डोनाल्ड से अच्छा परफॉर्म कर रहा था। सरल भाषा में चिम्पैंजी का बच्चे ज्यादा बढ़िया से विकसित हो रहा था।
अंत में ये देखा गया की एक चिम्पैंजी का बच्चा चिम्पैंजी ही रहेगा। वो ना इंसानों की तरह बेहवे कर पायेगा ना ही इंसानों की तरह बोल पायेगा। द साइकोलॉजिकल रिकॉर्ड के लेखक इस रिसर्च के बारे में लिखते हैं की, केलॉग्स का प्रयोग “सब्जेक्ट्स के पर्यावरण का ख्याल रखे बिना किया गया था। जबकि यह प्रयोग, रखी गई सीमाओं को प्रदर्शित करने मेंयानि की अपने सवालों का जवाब ढूंढने में, अपने समय से पहले किसी भी अध्ययन से बेहतर सफल रहा। “
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