सोहना मोहना की कहानी – आपने हिंदी शब्दकोश में ये शब्द तो काफी बार सुना होगा ..असंभव! ये ऐसा शब्द है जिसके आगे कई लोग घुटने टेक देते हैं. लेकिन वाकई में इस शब्द का मोल इंसानी दुनिया में तब तक ही है जब वो हार न मान ले, लेकिन जो इसे छोड़कर आगे बढ़ता वो इन सब के परे मिसाल कायम करता है. एक ऐसी ही मिसाल के प्रत्यक्ष प्रमाण हैं जन्म के बाद से पिंगलवाड़ा में पीला और एक ही शरीर से जुड़े दो भाई सोहना मोहना. अक्सर यही कहा जाता है कि शरीर से जुड़े ऐसे बच्चे ज्यादा देर तक जीवित नहीं रहते परंतु इन दोनों भाइयों ने सारे मिथक तोड़ दिए हैं.
सोहना मोहना की कहानी
14 जून, 2003 को दिल्ली के सुचेता कृपलानी अस्पताल में जन्मे सोहना और मोहना अब बालिग हो गए हैं. अब उन्हें वोट का अधिकार मिल जाएगा. दोनों ने इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग का तीन साल का डिप्लोमा भी कर लिया है.
दोनों की जिंदगी आसान नहीं रही. वह छाती के नीचे से एक-दूसरे के साथ जुड़े हुए हैं. दोनों के सिर, छाती, दिल, फेफड़े और रीढ़ अलग-अलग हैं लेकिन बाकी शरीर में किडनी, लीवर, और ब्लेडर सहित शरीर के अन्य सभी अंग एक ही व्यक्ति की तरह हैं.
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इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में किया डिप्लोमा
ये बात भी बहुत चौकाने वाली हैं कि वो एक जिस्म दो जान है क्योंकि उनका आधार कार्ड, एग्जाम में रोलनंबर भी अलग अलग होता है. दसवीं, 12वीं और इलेक्टि्रकल इंजीनियरिंग डिप्लोमा की परीक्षा में उनके रोल नंबर अलग-अलग थे. आधार कार्ड भी अलग-अलग हैं.
अलग आधार पर बनेगें पहचान पत्र
पिंगलवाड़ा society ने 14 जून को इनके 18 वर्ष के हो जाने पर वोट बनाने के लिए अलग-अलग आवेदन भी किया है. अमृतसर के एडीसी हिमांशु अग्रवाल ने कहा कि जैसे इन दोनों के आधार कार्ड अलग-अलग हैं, उसी तरह दोनों के वोट भी अलग-अलग बनेंगे.
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एक दूसरे के दिमाग का मानते हैं निर्देश
विकृति के बावजूद सोहना और मोहना हर काम से पहले आपसी सामंजस्य बिठाते हैं. यदि सोहणा कहीं जाना चाहता है तो मोहना को बता देता है. इससे उन्हें गंतव्य तक पहुंचने में आसानी होती है. इसका कारण यह है कि उनकी एक टांग सोहणा और दूसरी मोहना के दिमाग से मिलने वाले निर्देश को मानती है.
सोहना मोहना की कहानी – जब दोनों आपस में बात बिठा लेते हैं तो दोनों का दिमाग एक तरफ चलने का निर्देश देता है तो दिक्कत नहीं आती. किसी विद्युत उपकरण की मरम्मत करनी दो तो सोहणा उपकरण पकड़ता है और मोहना पेचकस या प्लास की मदद से उसे ठीक करता है.
पैदा होने पर माँ बाप ने घर ले जाने से किया मना
लोग ऐसा बताते है कि जब दिल्ली में इनका जन्म हुआ तो मां कामिनी और पिता सुरजीत कुमार ने इन्हें घर ले जाने से इन्कार कर दिया था. जिसके बाद पिंगलवाड़ा ने इनकी परवरिश की जिम्मेदारी ली, बीबी इंद्रजीत कौर ने उनका नामकरण किया. डाक्टरों ने कहा था कि दोनों ज्यादा समय जिंदा नहीं रहेंगे, लेकिन जिंदगी की तमाम मुश्किलों को हराते हुए दोनों बालिग हो गए हैं.